बिहार की गौरवमयी वैष्णव धारा – भाग-2
इसके लेखक पं. भवनाथ झा हैं. लेखक परिचय के लिए यहाँ क्लिक करें।
शालग्राम क्षेत्र
वाराह-पुराण में गण्डकी नदी के दोनों तट को शालग्राम क्षेत्र कहा गया है। इस पुराण के 144वें अध्याय में इस गण्डकी की उत्पत्ति हिमालय के जिस भाग से हुई है उसका माहात्म्य वखानते हुए वराह रूपधारी विष्णु कहते हैं कि इस शिला पर भगवान् शंकर मेरे (विष्णु के) स्वरूप के साथ अर्थात् हरिहरात्मक रूप में शालग्राम पर्वत पर वास करते हैं। मैं भी वहीं पर्वत के रूप में निवास करता हूँ। यह पर्वत नेपाल का ‘मुक्तिनाथ’ क्षेत्र है। इस अध्याय की कथा के अनुसार एक बार भगवान् विष्णु जगत् के कल्याण के लिए हिमालय पर्वत पर तपस्या करने लगे। कुछ समय के बाद उनके तेज से समस्त चराचर जगत् जलने लगा और विष्णु के गण्डस्थल (कपोल) से स्वेद निकलने लगा। यही धारा बह चली और गण्डकी के नाम से विख्यात हुई। इस धारा को देखकर सभी देवता आश्चर्य में पड़ गये। सब देवता एक दूसरे से इस धारा का उद्गम पूछने लगे। ब्रह्माजी ने भी भगवान् शंकर से पूछा। इस पर भगवान् शंकर सबको लेकर वहाँ पहुँचे जहाँ भगवान् विष्णु तपस्या कर रहे थे और उनके गण्डस्थल से धारा निकल रही थी। वहाँ पहुँचकर भगवान् शंकर ने कहा-
मुक्तिक्षेत्रमिदं देव दर्शनादेव मुक्तिदम् ।
गण्डस्वेदोद्भवा यत्र गण्डकी सरितां वरा ।।
भविष्यति न सन्देहो यस्या गर्भे भविष्यसि ।
त्वयि स्थिते जगन्नाथे तव सान्निध्य कारणात् ।।
अहं ब्रह्मा च देवाश्च ऋषिभिः सह केशव।
सर्वे वेदाश्च सर्वतीर्थानि चाप्युत ।।
वसिष्यामः सदेवाश्च गण्डक्यां जगतां पते ।। (106-108)
इसी अध्याय में उल्लेख आया है कि एकबार रेवा (नर्मदा) नदी ने भगवान् शंकर की आराधना कर उन्हें प्रसन्न कर अपने गर्भ में उनके स्वरूप को धारण करने का वर प्राप्त किया था। भगवान् शंकर ने उन्हें वर दिया था कि तुम्हारे गर्भ से निकली हुई शिला में मेरा स्वरूप होगा और उस दिन से नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा प्रारम्भ हुई। इसी प्रकार गण्डकी ने भी भगवान् विष्णु की तपस्या कर यही वर माँगा था कि आप मेरे गर्भ से प्रकट हों। विष्णु के उसी वरदान को स्मरण दिलाते हुए भगवान् शंकर ने कहा कि इस गण्डकी के गर्भ से शालग्राम शिला प्रकट होगी, जिसमें भगवान् विष्णु का वास होगा।
इस पवित्र नदी गण्डकी का उद्गम-स्थल यद्यपि नेपाल में है किन्तु इसकी धारा बिहार की भूमि को देवमय बनाती हुई सोनपुर के पास गंगा में मिल जाती है। इस संगम-स्थल को यहाँ हरिहर क्षेत्र कहा गया है और इसकी भूरि भूरि महिमा गायी गयी है।
वाराह-पुराण के 145वें अध्याय के अन्त में भगवान् वराह रूपधारी विष्णु कहते हैं कि हे पृथ्वी देवी! इस प्रकार गण्डकी नदी नदियों में श्रेष्ठ है जहाँ यह भागीरथी के साथ मिलती हैं वहाँ हरिक्षेत्र है। इस तीर्थ का माहात्म्य तो देवतागण भी नहीं जानते-
एवं सा गण्डकी देवि नदीनामुत्तमा नदी।
गंगाया मिलिता यत्र भागीरथ्या महाफला ।।
अपरं तन्महत्क्षेत्रं हरिक्षेत्रमिति स्मृतम्।
आदौ सा गण्डकी पुण्या भागीरथ्या च संगता।।
तस्य तीर्थस्य महिमा ज्ञायते न सुरैरपि ।।
भागवत पुराण की कथा के अनुसार इसी संगम क्षेत्र पर गज और ग्राह की घटना हुई थी और संकटग्रस्त गज की पुकार पर भगवान् विष्णु स्वयं प्रकट होकर गज की रक्षा की थी। वर्तमान् में यहाँ ‘कोनहारा’ घाट है, जो ‘कोण”द’ प्रतीत होता है। संगम के कोण पर प्राचीन काल में कोई प्राकृतिक हªद (तालाब) बन गया होगा, जहाँ हाथी के फँस जाने की घटना घटी होगी।
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